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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?


वीरभूम के आलुन्दा गाँव की औरत सनेरा, जो कर गुज़री, वह करने की हिम्मत कितनी औरतें करती हैं? कितनी औरतें हैं जो विवाह के मण्डप में अपनी माला उतारकर फेंक देती हैं? कुल अठारह साल की लड़की, उसने दिखा दी अपनी हिम्मत। किसी के भी आग्रह-अनुरोध पर उसने उगली हुई मक्खी नहीं निगली। उसके मन में जो आया, उसने किया। उसने वह विवाह तोड़ देने का फैसला किया और तोड़ भी दिया। जो आदमी विवाह-मण्डप में ही बेटी के बाप की बेइज्जती करने से नहीं हिचकिचाया, वह जीवन भर उठते-बैठते बेटी का भी अपमान करेगा। सनेरा समझ गयी थी। सनेरा वैसी जहरीली ज़िन्दगी नहीं चाहती थी। चूँकि वह ऐसा नहीं चाहती थी, इसलिए विवाहित जीवन शुरू करने से पहले ही उसने वह विवाह ख़ारिज कर दिया।

सनेरा की उम्र कुल अठारह साल। आमतौर पर इस उम्र में परिवार के दबाव के आगे औरतें झुक जाने को मजबूर हो जाती हैं। प्रतिवाद की भाषा तैयार करने में औरतें बहुत ज़्यादा वक़्त लेती हैं। वैसे जो औरतें प्रतिवाद की भाषा तैयार नहीं कर पातीं वे ज़िन्दगी भर नहीं कर पातीं। कोई-कोई किशोर उम्र में खासी प्रतिवादी होती हैं। जैसी मर्जी होती है, उस ढंग से चलती हैं, अपने अधिकारों के बारे में सजग रहती हैं, लेकिन जैसे ही शादी का समय नज़दीक आने लगता है तब माँ-बाप द्वारा पसन्द किये गये लड़के के गले में आँख-कान मूंदकर जयमाला डाल देती हैं। ससुराल पहुँचकर मज़े से आज्ञाकारिणी बहू बन जाती हैं। शान्त, समाहित! किसी ज़माने में, अपनी किशोर-उम्र में, वह काफ़ी खुराफाती थी, हर वक़्त हुड़दंग मचाया करती थी-लेकिन विवाह के बाद शाम की प्याली के साथ, बस वह सब महज कुरमुरी यादें भर बनकर रह जाती हैं।

डोमेस्टिक वायलेंस का अनुवाद, नारी-निर्यातन होना ही तर्कसंगत है। निर्यातन आमतौर पर मर्दो द्वारा औरतों पर ही किया जाता है। फिलहाल मैं 'गृह-निग्रह' शब्द का उपयोग करूँगी। राष्ट्र-समूह कहता है-'भारतवर्ष की दो-तिहाई औरतें गृह-निग्रह की शिकार हैं।' गृह-निग्रह के विरुद्ध एक कानून भी बना है। लेकिन कितनी औरतें इस कानून का सहारा लेती हैं? सनेरा जैसी औरत के अलावा, है किसी में हिम्मत कि इस कानून के अन्तर्गत फँसाकर अत्याचारी पति को जेल की हवा खिलाये? नहीं, उन लोगों की इतनी हिम्मत नहीं पड़ेगी, भय और लज्जा की वजह से! 'भय' और 'लज्जा'-ये दोनों ही चीजें, औरतों के सतीत्व की तरह पवित्र होती हैं। जो औरत समाज से नहीं डरती, समाज के सामने, जिसके मन में लज्जा जैसी कोई चीज़ नहीं होती, वही अपनी इज्ज़त या सतीत्व गँवाने जैसा अपराध करती हैं। गृह-निग्रह जैसे क़ानून को उपयोगी बनाने के लिए सनेरा जैसी औरतें चाहिए। हैं कहीं ऐसी औरतें?

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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